Detailed information on Kiwi gardening in Uttarakhand

कीवी फल (चायनीज गूजबेरी) का उत्पति स्थान चीन है, पिछले कुछ दशकों से यह फल विश्व भर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है। न्यूजीलैण्ड इस फल के लिए प्रसिद्व है, क्योंकि इस देश ने कीवी फल को व्यवसायिक रूप दिया इसका उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड में बहुत अधिक है। किवी फल भारत में 1960 में सर्वप्रथम बंगलौर में लगाया गया था, लेकिन बंगलौर की जलवायु में प्रर्याप्त शीतकाल (चिलिंग) न मिल पाने के कारण सफलता नहीं मिली।

मध्यम पहाड़ी क्षेत्र (1000-2000 मीटर तक की ऊंचाई) जहां ग्रीष्मकालीन तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक न रहता हो, तेज हवाएं चलती हों तथा पाला न पड़ता हो कीवी उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। अच्छी गुणवत्ता वाले पौधों का न मिल पाना, तकनीकी जानकारी का अभाव तथा उचित विपणन व्यवस्था न होने के कारण कीवी उत्पादन राज्य में व्यवसायिक रूप नहीं ले पा रहा है। राज्य के अधिकतर कृषक कीवी की अच्छी गुणवत्ता वाली पौधों के लिए डॉ. वाईएस पंवार औद्यानिक एवं वानिकी, विश्व विद्यालय नौणी, सोलन हिमाचल प्रदेश से लाइन पर खड़े होकर लेते हैं।

वर्ष 1963 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केन्द्र फागली में कीवी की सात प्रजातियों के पौधे आयतित कर लगाये गये। जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया।

उत्तराखंड में वर्ष 1984-85 में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा टेहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देख रेख में इटली से आयतित कीवी की विभिन्न प्रजातियों के 100 पौधो का रोपण किया गया जिनसे कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी प्राप्त हो रहा है।

वर्ष 1991-92 में तत्कालीन उद्यान निदेशक डा० डीएस राढौर द्वारा राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन, फागली शिमला हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगा कर प्रयोग हेतु, राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केन्द्रों यथा चौबटिया रानीखेत,  चकरौता (देहरादून) , गैना/अंचोली (पिथौरागढ़), डुंण्डा (उत्तरकाशी) आदि स्थानों में लगाये गये जिनसे उत्साहवर्धक कीवी की उपज प्राप्त हुई।

राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो NBPGR क्षेत्रीय केंद्र, निगलाट, भवाली नैनीताल में भी 1991 -92 से कीवी उत्पादन पर शोधकार्य हो रहे हैं।य ह केन्द्र सीमित संख्या में कीवी फल पौधों का उत्पादन भी करता है, इस केन्द्र के सहयोग से भवाली के आसपास के क्षेत्रों में कीवी के कुछ बाग भी विकसित हुये है। राज्य में कीवी बागवानी की सफलता को देखते हुए कई उद्यान पतियों ने बागवानी बोर्ड व उद्यान विभाग की सहायता से कीवी के बाग विकसित किए हैं।

उद्यान पंडित कुन्दन सिंह पंवार ने 1998 में राष्ट्रीय बागवानी वोर्ड देहरादून का पहला कीवी प्रोजेक्ट पाव नैनबाग जनपद टेहरी में लगाया। नैनबाग पंत्वाडी में बीरेंद्र सिंह असवाल ने कीवी का बाग लगाया है, असवाल कीवी के पौधे भी बनाते हैं।

अगास संस्था के जगदम्वा प्रसाद मैठाणी द्वारा भी पीपल कोटी, जनपद चमोली में, जान्हवी नर्सरी के अन्तर्गत कीवी का उत्पादन किया जा रहा ही राज्य के कई अन्य कृषकों ने भी प्रयोग के रूप में कीवी के बाग लगाये है।

कीवी फल अत्यन्त स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है। इस फल में विटामिन सी काफी अधिक मात्रा में होता है तथा इसके अतिरिक्त इस फल में विटामिन बी, फास्फोरस, पौटिशयम व कैल्शियम तत्व भी अधिक मात्रा में पाये जाते हैं डैगू बुखार होने पर कीवी खाने की कई लोग सलाह देते हैं।

जलवायु : किवी एक पर्णपाती (पतझड़) पौधा है तथा इसे लगभग 600-800 द्रूतिशीतन घण्टे (चिलिंग) सुषुप्तावस्था को तोड़ने के लिए चाहिए। राज्य में यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में 1000 से 2000 मी॰ की उँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। कीवी में फूल अप्रैल माह में आते हैं और उस समय पाले का प्रकोप फल बनने में बाधक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पाले की समस्या है वहां इस फल की बागबानी सफलतापूर्वक नही हो सकती, वे क्षेत्र जिनका तापमान गर्मियों में 35 डिग्री से कम रहता है तथा तेज हवायें चलती हो, लगाने के लिए उपयुक्त हैं। कीवी के लिए सूखे महिनों मई-जून और सितम्बर अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए।

भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण : जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है। जिस भूमि में कीवी का उद्यान लगाना है उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा का पीएच मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन) व चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके। पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पी.एच. मान कम (अम्लीय) है तो मिट्टी में चूना मिलायें यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय) है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट,(जिप्सम) का प्रयोग करें। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है तथा हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। कीवी के लिए 6.5 पीएच मान वाली भूमि उपयुक्त रहती है।

किस्में : कीवी फल मे नर व मादा दो प्रकार की किस्में होती है। एलीसन, मुतवा एवम् तमूरी नर किस्में है। एवोट, एलीसन, ब्रूनों, हैवर्ड एवं मोन्टी मुख्य मादा किस्में है। इनमें हैवर्ड न्यूजीलैण्ड की सबसे अधिक उन्नत किस्में है। एलीसन व मोन्टी जिसकी मिठास सबसे अधिक है उपयुक्त पाई गई है।

रेखांकन एवं पौध रोपण : पौध लगाने से पहले खेत में रेखांकन करें। कीवी के पौधे 6 x 3 मीटर याने लाइन से लाइन की दूरी तीन मीटर तथा लाइन में पौध से पौध की दूरी 6 मीटर रखें। 1x1x1 मीटर आकार के गड्ढे तथा स्थान गर्मियों में खोदकर 15 से 20 दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीड़े मकोड़े मर जायं। गड्ढा खोदने समय पहले ऊपर की 6″ तक की मिट्टी खोद कर अलग रख लेते हैं इस मिट्टी में जीवांश अधिक मात्रा में होता है गड्ढे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्ढे की मिट्टी के साथ मिला देते हैं इसके पश्चात एक भाग अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो को भी मिट्टी में मिलाकर गढ्ढों को जमीन की सतह से लगभग 20 से 25 सेमी ऊंचाई तक भर देना चाहिए ताकि पौध लगाने से पूर्व गढ्ढों की मिट्टी ठीक से बैठ कर जमीन की सतह तक आ जाये। पौधों को शीत काल के उपरान्त जनवरी-फरवरी या बसन्त के शुरू में लगाया जाता है। पौधों को भरे हुए गड्ढौं के बीच में लगायें पौधे की चारों ओर की मिट्टी भली भांति दबायें पौध लगाने पर सिंचाई अवश्य करें। कीवी के पौधे एक लिंगी होते हैं जिसमें मादा और नर फूल प्रथक प्रथक पौधों पर आते हैं इसलिए यह आवश्यक है कि मादा पौधों की एक निश्चित संख्या के बीच में परागण हेतु एक नर पौधा भी लगा हो इसके लिए 1:6 1:8 या 1:9 के अनुपात से पौधों को लगाना चाहिए।

नर और मादा पौधों की रोपण योजना : नर पौधा –X, मादा पौधा –O, कीवी के पौधों का निम्न प्रकार से रोपण करना चाहिए।

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देखभाल :

खादः किवी फल के पौधों की वृद्वि और उत्पादन उर्वरको की सही मात्रा पर निर्भर करता है।

सिंचाईः सूखे महिनों मई-जून और सितम्बर अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। अगर इस समय सिंचाई न हो तो पौधों की वृद्वि तथा उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।

सीधाई और काट छांट : कीवी की लताओं को सीधा रखने की आवश्यकता होती है लाताऔं को सीधा रखने का अभिप्राय पौधों को आधार व आकार प्रदान करना है। शुरू में पौधों को लकड़ी के डंडौं के सहारे ऊपर चलाते हैं यदि लतायें डंडे पर लिपटती है तो उन्हें छुड़ा कर सीधा करें तथा सुतली से बांध कर ऊपर चढायें। पौधों की सिंधाई  टी- बार ,ट्रेलिस, या परगोला विधि के अनुसार की जाती है। पहले वर्ष पौधे को लगभग भूमि से 30 से॰मी॰ की उचांई से काटा जाता है तथा बाद में एक ही शाख को ट्रेलिस पर चढ़ा दिया जाता है। इस मुख्य शाखा में से दो शाखायें निकाली जाती है जिन पर 2 फीट की दूरी पर अनेक शाखओं को तारों पर फैला देते है। इस प्रकार की विधि 4-5 साल तक करनी पड़ती है और उस के बाद पौधे फल देने लगता है। तारों पर फैले हुई शाखओं को तीसरी व छटी आंख तक काटते है और इन ही शाखओं पर जो शाखायें निकली है उन्ही पर फल लगते है। ज्यादा फल लेने के लिए पौधों की परगोला विधि द्वारा सिंघाई करनी चाहिए इससे फल धूप तथा पक्षियों द्वारा खराब नही होते।

फलों की तोड़ाई उपज व विपणन : किवी के फलो की उपज औसतन 50-100 कि॰ग्रा॰ प्रति पौधा पायी गयी है। फलों को सही परिपक्व स्थिति पर ही तोड़ना चाहिए जो कि अक्टूबर-नवम्बर में आती है। फलों की परिपक्वता फलों के वाह्य आवरण के बाल रोऔं से किया जा सकता है परिपक्व फलों के रोयें हाथ फेरने पर आसानी से फल से अलग हो जाते हैं। जिस समय किवी फल तैयार होता है, उन दिनो बाजार में ताजे फलों के अभाव के कारण किसान काफी आर्थिक लाभ उठा सकता है। इसे शीतगृहों मे चार महीने तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है। फलो को दूर भेजने में भी कोई हानि नही होती, क्योंकि कीवी के फल अधिक टिकाऊ है कमरे के तापमान पर इसे एक माह तक रखा जा सकता है इन्ही कारणों से बाजार में इसको लम्बे समय तक बेच कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसके विपणन के लिए गते के 3 से 5 किलो के डिब्बे प्रयोग में लाने चाहिए।

विदेशी पर्यटकों में यह फल अधिक लोकप्रिय होने के कारण दिल्ली व अन्य बड़े शहरों मे इसे आसानी से अच्छे दामों पर बेचा जा सकता है। राज्य के आमजन में कीवी फल की स्वीकार्यता अभी नहीं बन पायी है जिस कारण स्थानीय बाजार में यह फल कम ही बिक पाता है वाहर भेजने के लिए इतना उत्पादन नहीं हो पाता कि उत्पादन वाहर भेजा जा सके या वाहर का आढ़ती यहां पर आये। राज्य में कीवी फल आज भी नुमायशौं प्रदर्शनियों में विभागों के स्टालौं में प्रदर्शन के रूप में ही देखने को मिलता है।

उत्तराखंड में कीवी फल उत्पादन का भविष्य दिखाई देता है किन्तु समय पर अच्छी गुणवत्ता वाली कीवी फल पौध उपलब्ध न होने तथा तकनीकी जानकारी का अभाव व स्थानीय बाजार में कीवी फलों के उचित दाम न मिल पाने तथा उचित विपणन व्यवस्था न होने के कारण आज भी राज्य में कीवी फल उत्पादन व्यवसायिक रूप नहीं ले पाया।

कीवी उत्पादन हेतु सम्पर्क कर सकते हैं-

1. राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र निगलाट भवाली नैनीताल। 0594222002, 0594220020, 9685515598
2. उद्यान पंडित कुन्दन सिंह पंवार- 9411313306
3. राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड 74/B फेज 2 पंडित वाड़ी राजपुर रोड देहरादून- 01352774272, 01352762767

कीवी उत्पादन के लिए प्रोजेक्ट बनाने तथा अनुदान लेने हेतु राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से सम्पर्क कर सकते हैं। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड उद्यान विभाग के सहयोग से 40% तक का अनुदान देता है। कीवी का पौधा शुरू में जब सहारे पर चढ़ता है तो वह सहारे पर लिपटता है उसे छुड़ा कर सीधा करें तथा सुतली या घास से बांधे वरना बाद में पौधे का तना सीधा नहीं रहेगा।

लेखक :
कृषि विशेषज्ञ, डॉ. राजेंद्र कुकसाल (पूर्व लोकपाल मनरेगा)
पौड़ी गढ़वाल।

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